दोस्तों आज के इस लेख में हम आपको Mahadevi Verma Ka Jeevan Parichay बताने वाले हैं। महादेवी वर्मा को बचपन से ही चित्रकला, काव्यकला और संगीतकला में रूचि थी।
उन्होंने मात्र 7 वर्ष की अल्पायु में ही अपनी पहली कविता “आओ प्यारे, तारे आओ मेरे आंग में बिछ जाओ” लिखी।
महादेवी वर्मा आधुनिक हिंदी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक हैं, इसलिए इन्हें आधुनिक युग की मीरा भी कहा जाता है।
Mahadevi Verma Ka Jeevan Parichay – संक्षिप्त रूप में
पूरा नाम (Full Name) | महादेवी वर्मा |
उपनाम | आधुनिक युग की मीरा, हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती |
जन्म तिथि (Date of Birth) | 26 मार्च, 1907 ई0 |
जन्म स्थान (Birth Place) | उत्तर प्रदेश राज्य के फर्रुखाबाद जिले में |
मृत्यु तिथि (Date of Death) | 11 दिसंबर, 1987 ई0 |
उम्र (Age) मृत्यु के समय | 80 वर्ष |
मृत्यु का स्थान (Place of Death) | उत्तर प्रदेश राज्य के, प्रयागराज जिले में |
पिता का नाम (Father’s Name) | श्री गोविंद सहाय वर्मा |
माता का नाम (Mother’s Name) | श्रीमती हेमरानी देवी |
पति का नाम (Husband Name) | डॉ0 स्वरूप नारायण मिश्रा |
बच्चों के नाम (Children’s Name) | उनकी कोई संतान नहीं थी |
नागरिकता (Nationality) | भारतीय |
धर्म (Religion) | बौद्ध धर्म |
भाषा (Language) | खड़ी बोली। |
जाति (Caste) | कायस्थ (ब्राह्मण) |
व्यवसाय (Profession) | कवि, संपादक, लघुकथा लेखिका |
प्रारम्भिक शिक्षा | मध्य प्रदेश राज्य के इंदौर जिले से |
उच्च शिक्षा | प्रयाग (इलाहाबाद) से |
शिक्षा | स्नातकोत्तर(M.A) |
प्रमुख रचनाएं | यामा, दीपशिखा, निहार, नीरजा, सान्ध्यगीत, रश्मि आदि |
उपलब्धि | महिला विद्यापीठ की प्राचार्य, भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार, पदम भूषण पुरस्कार, सेकसरिया,मंगला प्रसाद पुरस्कार तथा भारत भारती पुरस्कार, आदि। |
महादेवी वर्मा का जीवन परिचय
दोस्तों अब हम एक-एक करके, महादेवी वर्मा के जीवन से जुड़े, हर पहलू के बारे में जानेंगे। यदि आप उनके विषय में पूरी जानकारी पाना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरुर पढ़ें।
महादेवी वर्मा का प्रारंभिक जीवन (Early life of Mahadevi Verma)
महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च, 1907 ई0 को उत्तर प्रदेश राज्य के फर्रुखाबाद जिले में में हुआ था। उनके खानदान में 7 पीढ़ियों के बाद पहली बार किसी लड़की ने जन्म लिया था, जिसे आज हम महादेवी वर्मा के नाम से जानते हैं।
उनका यह नाम उनके दादा जी बाबा बाबू बाँके विहारी ने रखा। उनके पिता का नाम गोविंद सहाय वर्मा था।
उनके पिता भागलपुर के कॉलेज में प्रधानाचार्य के पद पर नियुक्त थे। उनकी माता का नाम हेमरानी देवी था। उनकी माता एक धार्मिक महिला थी, जो प्रतिदिन पूजा-पाठ करती थी।
उनके नाना जी ब्रज भाषा में कविताएँ लिखते थे। महादेवी वर्मा के जीवन पर, अपने नाना और अपनी माता जी का गहरा प्रभाव पड़ा।
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महादेवी वर्मा का विवाह (Marriage of Mahadevi Verma)
महादेवी वर्मा के दादा बाबा बांके विहारी जी ने सन 1916 ईस्वी में उनका विवाह बरेली के रहने वाले स्वरूप नारायण वर्मा से कर दिया था। उस समय स्वरूप नारायण वर्मा कक्षा 10 में पढ़ते थे।
महादेवी वर्मा के पति अपनी इंटर की पढ़ाई करने के लिए, लखनऊ मेडिकल कॉलेज के बोर्डिंग हाउस में रहने लगे। महादेवी वर्मा उस समय इलाहाबाद के छात्रावास में रहकर अपनी आगे की पढ़ाई कर रही थीं।
पति के साथ उनके संबंध मधुर थे, लेकिन वह विवाह नहीं करना चाहती थी। वह एक-दूसरे को पत्र लिखते थे। कभी-कभी उनके पति, इलाहाबाद उनसे मिलने आया करते थे।
महादेवी वर्मा ने अपने पति से दूसरी शादी करने के लिए भी कहा, लेकिन उनके पति ने कभी भी दूसरी शादी नहीं की।
महादेवी वर्मा साध्वी की तरह श्वेत वस्त्र पहनती थीं और उन्होंने कभी भी अपने जीवन में शीशा नहीं देखा।
सन 1966 ईस्वी में महादेवी वर्मा के पति का देहांत हो गया और उसके बाद महादेवी वर्मा इलाहाबाद में ही रहने लगी।
महादेवी वर्मा की शिक्षा (Mahadevi Verma ki Shiksha)
महादेवी वर्मा जी की प्रारंभिक शिक्षा की शुरुआत इंदौर के मिशन स्कूल से प्रारंभ हुई। स्कूल के अलावा उन्होंने संस्कृत, अंग्रेजी, संगीत और चित्रकला जैसे विषयों का ज्ञान अपने घर पर ही ट्यूशन द्वारा लिया।
अल्प आयु में ही विवाह हो जाने के कारण, उनको अपनी शिक्षा बीच में ही छोड़नी पड़ी।
विवाह के बाद सन 1919 ईस्वी में महादेवी वर्मा ने दोबारा अपनी पढ़ाई की शुरुआत की। उन्होंने इलाहाबाद के कास्थवेट कॉलेज में प्रवेश लिया और उसी कॉलेज के छात्रावास में रहकर अपनी पढ़ाई की।
उन्होंने 7 वर्ष की अल्प आयु में ही कविता लिखना शुरु कर दिया था। सन 1925 ईस्वी में मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद उनको एक सफल कवयित्री के रूप में जाना जाने लगा। उनकी कविताएं समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित की जाने लगी।
उन्होंने 1932 ईस्वी में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत विषय में स्नातकोत्तर (M.A) की डिग्री प्राप्त की। M.A. की परीक्षा पास होने तक, उनके दो कविताएं संग्रह निहार (1930) और रश्मि (1932) प्रकाशित हो चुके थे। [Mahadevi Verma Ka Jivan Parichay]
महादेवी वर्मा की भाषा शैली
महादेवी वर्मा ने अपनी कविताओं में शुद्ध खड़ी बोली का प्रयोग किया है। इन्होंने संस्कृत से M.A किया था इसलिए इनकी कविताओं में कहीं-कहीं संस्कृत के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है।
भावतरलता, प्रतीकात्मकता, चित्रात्मकता, अलंकारिता, छायावादी तथा रहायात्मक अभिव्यक्ति उनकी रचना-शैली की प्रमुख विशेषताएं हैं।
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महादेवी वर्मा का साहित्यिक परिचय (Mahadevi Verma Ka Sahityik Parichay)
महादेवी वर्मा छायावाद को चार स्तंभ में से एक माना जाता है। छायावादी काव्य की समृद्धि में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है।
महादेवी वर्मा का हिंदी के रहस्यवादी कवियों में सर्वोच्च स्थान है। इन्होंने हिंदी साहित्य को अपने गद्य और पद्य लेखन से सजाया है।
इनकी कविताएं संगीत की तरह मधुर हैं। इन्होंने अपनी रचनाओं में नारी हृदय की कोमलता और सरलता को बड़े ही सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया है। इनकी कविताएं सुसज्जित भाषा का एक अनुपम उदाहरण हैं।
उनका हिंदी साहित्य में अतुलनीय योगदान रहा है। इन्होंने हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए प्रयाग में साहित्यकार संसद (1944) और रंगवाणी नाट्य संस्था की स्थापना की थी।
उन्होंने 1923 ईस्वी में महिलाओं की पत्रिका चांद का कार्यभार संभाला और इसकी संपादक बनी।
इनके अथक प्रयास से ही भारत में पहली बार महिला कवि सम्मेलन की शुरुआत की गई। इसके बाद 15 अप्रैल 1933 ईस्वी को सुभद्रा कुमारी चौहान की अध्यक्षता में पहला अखिल भारतीय कवि सम्मेलन प्रयागराज महिला विद्यापीठ में संपन्न हुआ।
प्रयागराज विद्यापीठ के विकास में उन्होंने अपना बहुमूल्य योगदान दिया और वह प्रयागराज विद्यापीठ की प्रधानाचार्य और कुलपति भी रही। महात्मा गांधी से प्रभावित होकर, उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया और देश की सेवा की।
1936 ईस्वी में उत्तराखंड के नैनीताल जिले से, लगभग 25 किलोमीटर दूर रामगढ़ कस्बे के उमागढ़ नाम के एक गांव में, उन्होंने अपना बंगला बनवाया था।
इस बंगले का नाम उन्होंने मीरा मंदिर रखा। वर्तमान समय में इस बंगले को महादेवी वर्मा साहित्य संग्रहालय के नाम से जाना जाता है। उन्होंने हमेशा महिलाओं की शिक्षा और आत्मनिर्भरता पर जोर दिया।
महिलाओं की मुक्ति और विकास के लिए उन्होंने आवाज उठाई। उन्होंने समाज में फैली रूढ़ियों की कड़ी आलोचना की और हमेशा एक समाज सुधारक के रूप में कार्य किया।
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महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएं (Mahadevi Verma Ki Rachna)
महादेवी वर्मा ऐसी कवयित्री थीं, जिन्हें कविता लेखन के अलावा गद्य लेखन में भी महारत प्राप्त थी। उनके कविता संग्रह निहार, रश्मि, नीरजा और सांध्यगीत की कविताओं को संकलित कर 1936 ई0 में यामा नाम से प्रकाशित किया गया। उनकी कृतियाँ/रचनाओं का विवरण इस प्रकार हैं –
महादेवी वर्मा का कविता संग्रह
कविता संग्रह का नाम | प्रकाशन का वर्ष |
निहार | 1930 |
रश्मि | 1932 |
नीरजा | 1934 |
सांध्यगीत | 1936 |
दीपशिखा | 1942 |
सप्तपर्णा | 1949 |
प्रथम आयाम | 1974 |
अग्निरेखा | 1990 |
उपरोक्त के अलावा भी महादेवी वर्मा के कुछ अन्य काव्य संकलन हैं, लेकिन उनके लिए उपरोक्त कविता संग्रहों में से ही कविता चुनी गयी है। इस प्रकार के काव्य संग्रह निम्नलिखित हैं-
कविता संग्रह का नाम | प्रकाशन का वर्ष |
यामा | 1936 |
आत्मिका | 1983 |
सन्धिनी | 1964 |
परिक्रमा | |
गीतपर्व | 1983 |
दीपगीत | 1983 |
स्मरिका | |
नीलाम्बरा | 1983 |
आधुनिक कवि महादेवी | 1983 |
महादेवी वर्मा का गद्य साहित्य
रेखाचित्र-
- अतीत के चल चित्र (1941)
- स्मृति की रेखाएँ (1943)
संस्मरण-
- पथ के साथी (1956)
- मेरा परिवार (1972)
- संस्मरण (1983)
भाषणों का संकलन- संभाषण (1974)
निबंध-
- श्रंखला की कडिया (1942)
- विवेचनात्मक गद्य (1942)
- साहित्यकार की आस्था (1962)
- संकल्पित
कहानियाँ- गिल्लू
बाल साहित्य-
- ठाकुर जी भोले हैं
- आज खरीदेंगे हम ज्वाला
पुरस्कार व सम्मान
महादेवी वर्मा को हिंदी साहित्य के क्षेत्र में, उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए, उन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
पुरस्कार | तिथि |
सक्सेरिया पुरस्कार | 1934 |
मंगलाप्रसाद पारितोषिक पुरस्कार | 1943 |
भारत भारती पुरस्कार | 1943 |
पद्म भूषण पुरस्कार | 1956 |
कुमाऊ विश्वविद्यालय नैनीताल द्वारा डी.लिट की उपाधि प्रदान की गयी | 1977 |
साहित्य अकादमी फेलोशिप | 1979 |
दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट की उपाधि प्रदान की गयी | 1980 |
ज्ञानपीठ पुरस्कार | 1982 |
बनारस विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट की उपाधि प्रदान की गयी | 1984 |
पद्म विभूषण पुरस्कार (मृत्यु के बाद) | 1988 |
- आजादी के बाद सन 1952 ईस्वी में, उन्हें उत्तर प्रदेश विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया गया।
- महादेवी वर्मा भारत की ऐसी प्रथम महिला थी, जिन्होंने 1971 ईस्वी में साहित्य अकादमी की सदस्यता ग्रहण की।
- उन्हें सन 1934 ईस्वी में उनके कविता संग्रह “नीरजा“ के लिए सक्सेरिया पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- उन्हें सन 1942 ईस्वी में उनकी रचना “स्मृति की रेखाएं” के लिए द्विवेदी पदक प्रदान किया गया।
- उन्हें उनके काव्य संकलन “यामा“ के लिए भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया।
- भारत सरकार के डाकतार विभाग ने उनके सम्मान में 16 सितंबर, 1991 ईस्वी को, जयशंकर प्रसाद के साथ ₹2 का एक युगल डाक टिकट जारी किया।
- महादेवी वर्मा का नाम भारत की 50 सबसे यशस्वी महिलाओं की सूची में शामिल किया गया।
महादेवी वर्मा की मृत्यु (Mahadevi Verma Ki Death)
भारतीय संस्कृति और दर्शन आत्मसात करने वाली महान कवयित्री महादेवी वर्मा का 11 सितंबर, 1987 ईस्वी को प्रयागराज में देहांत हो गया।
महादेवी वर्मा जीवन भर महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ती रही, उन्होंने अपनी अंतिम साँस तक महिलाओं को शिक्षा देने और उनको आत्मनिर्भर बनाने का काम किया। इसीलिए उन्हें महिला मुक्ति वादी के रूप में जाना जाता है।
महादेवी वर्मा से जुड़े रोचक तथ्य
- महादेवी वर्मा ने आठवीं कक्षा में पूरे प्रांत में प्रथम स्थान प्राप्त किया था।
- उन्होंने अपना पूरा जीवन श्वेत साड़ी पहनकर तख्त पर सो कर और बिना दर्पण देखे बिताया।
- उनका बाल विवाह हुआ था और विवाह के बाद ही उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की थी।
- उन्होंने अपने पति से दूसरा विवाह करने के लिए कहा था, लेकिन पति ने दूसरी शादी नहीं की थी।
- उन्होंने महात्मा गांधी से प्रभावित होकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया था।
- उन्होंने अपनी पहली कविता मात्र 7 वर्ष की उम्र में लिखी थी।
FAQ | महादेवी वर्मा से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर
महादेवी वर्मा की सबसे पहली रचना कौन सी है?
महादेवी की सबसे पहली रचना निहार है, जो एक काव्य संग्रह है, जिसे 1930 ई0 में प्रकाशित किया गया था।
महादेवी वर्मा ने अपनी पहली कविता कितनी उम्र में लिखी थी?
महादेवी वर्मा ने अपनी पहली कविता मात्र 7 वर्ष की उम्र में लिखी थी।
महादेवी वर्मा किसकी भक्त थी?
महादेवी वर्मा को आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है क्योंकि जिस तरह मीरा भक्ति काल में भगवान श्री कृष्ण के प्रति समर्पित थी, उसी तरह महादेवी वर्मा निर्गुण निराकार (ब्रह्मा) के प्रति समर्पित थीं।
महादेवी वर्मा क्या बनना चाहती थी?
महादेवी वर्मा भिक्षुणी बनना चाहती थी। उनके जीवन पर बौद्ध धर्म का गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने अपना पूरा जीवन सफेद साड़ी पहनकर और बिना दर्पण देखें गुजार दिया।
महादेवी वर्मा को कौन-कौन से पुरस्कार मिले?
महादेवी वर्मा को उनके काव्य संकलन यामा के लिए सन 1982 ईस्वी में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें सन 1956 में पद्म भूषण, सन 1988 ईस्वी में पद्म विभूषण और 1979 में साहित्य अकादमी फेलोशिप से सम्मानित किया गया। पद्म विभूषण सम्मान उन्हें मरणोपरांत दिया गया।
महादेवी वर्मा को “हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती” किसने कहा?
महादेवी वर्मा को हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती महान कवि निराला ने कहा। निराला उनके काफी नजदीक थे। निराला ने 40 वर्षों तक महादेवी वर्मा से राखी बंधवाई थी।
महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएं कौन कौन सी हैं?
महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं– निहार (1930), रश्मि (1932), नीरजा (1934), संध्या गीत (1936), दीपशिखा (1942) और यामा (1936) आदि
आधुनिक मीरा (Modern Mira) किसे कहा जाता है?
महादेवी वर्मा को आधुनिक युग की मीरा या मॉडर्न मीरा कहा जाता है।
छायावाद के चार स्तंभ किसे कहा जाता है?
महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और सुमित्रानंदन पंत को छायावाद के चार स्तंभ कहा गया है।
Conclusion
इस लेख में आपने Mahadevi Verma Ka Jeevan Parichay को पढ़ा, उम्मीद करता हूं कि महान कवयित्री महादेवी वर्मा जी से जुड़ी समस्त जानकारियां आपको पसंद आई होंगी।
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