Sant Kabir Das Biography in Hindi | कबीर दास का जीवन परिचय, रोचक तथ्य, दोहे, रचनाएँ

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दोस्तों आज के इस आर्टिकल में, हम आपको Sant Kabir Das Biography in Hindi के बारे में बताने वाले हैं। कबीर दास जी ज्ञानमार्गी शाखा के एक महान संत, कवि और समाज सुधारक थे। कबीर दास को संत संप्रदाय का प्रवर्तक माना जाता है। उन्होंने लोगों को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

कबीरदास जी के बारे में कहा जाता है कि यदि वह आज के समय में, हमारे बीच मौजूद होते तो, न जाने उनके ऊपर कितने मुकदमे चल रहे होते।

कबीर दास जी किसी एक धर्म को नहीं मानते थे, वे सभी धर्मों को एक समान समझते थे। उनका मानना था कि हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, अमीर और गरीब सबका प्रभु एक ही है।

उनके मन में हमेशा सवाल उठता था कि जब प्रत्येक धर्म और जाति के लोगों की बनावट एक जैसी होती है

हर किसी के खून का रंग लाल ही होता है, सूर्य अपना प्रकाश बिना किसी भेदभाव के सभी को समान रूप से देता है, तो इंसान एक-दूसरे से भेदभाव क्यों करता है?

Table of Contents

Sant Kabir Das Biography in Hindiसंक्षिप्त रूप में

कबीर दास का पूरा नाम (Full Name)संत कबीर दास
कबीर दास के उपनामकबीर दास, कबीर परमेश्वर, कबीर साहेब, कबीरा
कबीर दास की जन्‍म तिथि (Date of Birth)1398 ईo 
कबीर दास का जन्‍म स्‍थान (Birth Place)उत्तर प्रदेश में वाराणसी जिले के लहरतारा नामक स्थान पर हुआ था।
कबीर दास की मृत्‍यु तिथि (Date of Death)1518 ईo 
कबीर दास की उम्र (Age)120 वर्ष (मृत्‍यु के समय)
कबीर दास की मृत्‍यु का स्‍थान (Place of Death)काशी के निकट मगहर नामक स्थान पर हुई थी।
कबीर दास के पिता का नाम (Father’s Name)नीरू जुलाहे
कबीर दास की माता का नाम (Mother’s Name)नीमा
कबीर दास की पत्नि का नाम (Kabir Das Wife Name)लोई
कबीर दास के पुत्र का नाम (Son’s Name)कमाल
कबीर दास की पुत्री का नाम (Daughter’s Name)कमाली
नागरिकता (Nationality)भारतीय
धर्म (Religion)कबीर दास किसी एक धर्म को नहीं बल्कि सभी धर्मो को मानते थे।
कबीर दास की भाषा शैली (Language)अवधी, पंचमेल खिचड़ी, ब्रज, और सधुक्कड़ी
विषयसमाज सुधारक व अध्यात्मिक
व्यवसाय/ कार्य-क्षेत्र   कवि, दार्शनिक, गीतकार, जुलाहा
जाति (Caste)जुलाहा
कबीर दास की शिक्षानिरक्षर (अनपढ़)
कबीर दास के गुरु का नाम (Teacher’s Name)स्वामी रामानंद जी
कालभक्तिकाल
कबीर दास की प्रमुख रचनाएंसाखी, सबद, रमैनी, बीजक, सारतत्व
कबीर दास जयंतीप्रतिवर्ष जेष्ठय पूर्णिमा के दिन मनायी जाती है
प्रसिद्धसंत और कवि के रूप में
Kabir Das Short Biography in Hindi

कबीर दास का जीवन परिचय

अब हम इस आर्टिकल में Kabir Das Ji से जुड़े हर एक पहलू के बारे में विस्तृत रूप से जानेंगे, इसलिए आप इस लेख में अंत तक बने रहें।

कबीर दास का प्रारंभिक जीवन (Kabir Das Jivan Parichay)

प्राचीन मान्यताओं के अनुसार कबीर दास जी का जन्म सन् 1398 ई0 (विक्रम संवत 1455) को ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी (काशी) जिले में लहरतारा नामक स्थान पर हुआ था।

Sant Kabir Das Biography in Hindi
Sant Kabir Das Biography in Hindi

इनका जन्म एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ, जिसे गुरु रामानंद स्वामी ने पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था।

लेकिन कबीरदास का जन्म होने के पश्चात उस विधवा ब्राह्मणी को लोक-लज्जा का डर सताने लगा। उसे बार-बार एक ही डर सता रहा था कि दुनिया उस पर लांछन लगाएगी।

इसी डर की वजह से विधवा ब्राह्मणी अपने इस नवजात शिशु को काशी में लहरतारा नामक तालाब के किनारे छोड़ दिया।

इस नवजात शिशु का पालन-पोषण नीरू और नीमा नाम के एक मुस्लिम जुलाहा दंपत्ति ने किया था। नीरू और नीमा की खुद की कोई संतान नहीं थी।

इसी नवजात शिशु के बड़े होने पर, लोग उसे कबीर दास के नाम से जानने लगे। हिंदी साहित्य और इतिहास के पन्नों में नीरू को उनके पिता और नीमा को उनकी माता के रूप में जाना जाता है।

कबीर दास के जन्म को लेकर एक और मान्यता प्रचलित है। कबीर पंथ की एक दूसरी धारा का मानना है कि कबीर दास, लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर बाल रूप में प्रकट हुए थे और इसी स्थान पर नीरू और नीमा को बालस्वरूप में प्राप्त हुए थे।

कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार यह भी माना जाता है कि कबीर दास जी का जन्म काशी में नहीं बल्कि बस्ती जिले के मगहर नामक स्थान पर हुआ था

और इसके अलावा कुछ मान्यताओं के अनुसार आजमगढ़ जिले के बेलहारा नामक गांव को भी कबीर दास का जन्म स्थान माना जाता है।

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कबीर दास जी का विवाह (Kabir Das Ka Vivah)

कबीर दास का विवाह लोई नाम की लड़की से हुआ था। कबीर दास की दो संताने थी। जिनमें से  पुत्र का नाम कमाल और पुत्री का नाम कमाली था।

कबीरदास बहुत गरीब थे, जिसकी वजह से कबीर दास अपने बच्चों का पालन-पोषण बहुत ही मुश्किल से कर पाते थे। गरीबी की वजह से ही उनकी पत्नी उन्हें खरी-खोटी सुनाती थी।

कबीर दास की शिक्षा (Kabir Das ki Shiksha)

कबीर दास जी अनपढ़ थे, इस बात की पुष्टि उन्हीं के एक दोहे से होती है। जिसमें कबीरदास कहते हैं कि–

मसि कागज छुओ नहीं, कलम गई ना हाथ

इसका अर्थ है कि– ना तो मैंने कभी कागज छुआ है और ना ही कभी कलम को हाथ में पकड़ा है।

कबीर दास के गुरु (Kabir Das Ke Guru Kaun The)

अब आप सोच रहे होंगे कि कबीरदास पढ़े-लिखे नहीं थे, फिर भी इतने ज्ञानी थे? आखिर उन्हें यह ज्ञान कहां से प्राप्त हुआ?

इस बारे में कुछ लोगों का मानना कि उन्हे यह ज्ञान जगतगुरु रामानंद जी से प्राप्त हुआ है और रामानंद जी को ही Kabir Das Ji का गुरु माना जाता है।

रामानंद के गुरु होने का प्रमाण, कबीर दास के इस दोहे में मिलता है। काशी में हम प्रगट भए रामानंद चेताए

इस दोहे के माध्यम से कबीर दास जी ने स्वयं स्वीकार किया है कि उन्हें जो ज्ञान प्राप्त हुआ, वो सिर्फ गुरु रामानंद जी की देन है। कबीर दास को राम शब्द का दीक्षा भी गुरु रामानंद ने ही दी थी।

राम शब्द की दीक्षा से जुड़ी एक रोचक कहानी है। उस समय रामानंद जी बहुत बड़े गुरु माने जाते थे।

हर कोई उनका शिष्य बनना और उनसे शिक्षा प्राप्त करना चाहता था। कबीर दास भी उनका शिष्य बनना चाहते थे।

लेकिन  रामानंद ने कबीरदास को अपना शिष्य बनाने से इंकार कर दिया। इस बात को लेकर कबीरदास काफी परेशान थे, लेकिन उन्होंने मन ही मन ठान लिया कि वो आचार्य रामानंद जी को अपना गुरु बनाकर ही रहेंगे।

कबीर दास को पता चला कि रामानंद जी प्रत्येक दिन सुबह को पंचगंगा घाट पर स्नान करने के लिए जाते हैं।

इस बात का पता चलते ही, अगले दिन कबीर दास घाट की सीढ़ियों पर, बिल्कुल सीधे लेट गए और रामानंद ने जैसे ही सीढ़ियों पर पैर रखा, तो उनका पैर कबीरदास के शरीर पर पड़ गया।

उसी समय रामानंद जी के मुख से राम-राम शब्द निकल गया और कबीर दास ने उस राम नाम शब्द को ही अपना दीक्षा मंत्र मान लिया और रामानंद जी को ही अपना गुरु मान लिया।

लेकिन कुछ लोगों का ये भी मानना है कि कबीर दास जी का कोई गुरु नहीं था।

कबीर दास के प्रमुख शिष्य

कबीर दास के सबसे प्रिय शिष्य धर्मदास थे। कबीर दास पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन फिर भी उनके अंदर ज्ञान का अथाह भंडार था, जो उन्होंने अपने अनुभव और अपने गुरु से प्राप्त किया। कबीरदास बचपन से ही एकांत प्रिय व चिंतनशील स्वभाव के थे।

पढ़े-लिखे न होने के कारण कबीर दास ने खुद कोई ग्रंथ नहीं लिखा। उन्होंने सिर्फ अपने मुख से बोला

और Kabir Das Ki Vani को उनके शिष्यों ने कलमबद्ध किया। कबीर दास के शिष्यों और अनुयायियों ने मिलकर कबीर पंथ की स्थापना की। कबीर पंथ में सभी धर्मों को मानने वाले व्यक्ति शामिल थे।

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कबीर दास की भाषा शैली

संत कबीर दास ने अपनी रचनाओं में हिंदी भाषा की सभी बोलियों का प्रयोग किया है।

उनकी भाषा शैली में अवधी, ब्रज, राजस्थानी, पंजाबी, हरियाणवी और खड़ी बोली के शब्दों की बहुलता पाई जाती है, इसीलिए उनकी भाषा को पंचमेल खिचड़ी अथवा सधुक्कडी कहा जाता है।

कबीरदास का साहित्यिक परिचय 

अलग-अलग विद्वानों के अनुसार उनकी ग्रंथों की संख्या भी अलग-अलग बताई गई है। एचएल विल्सन के अनुसार कबीरदास के ग्रंथों की कुल संख्या 8 है

और जीएच वेस्टकॉट के अनुसार कबीर दास की कुल ग्रंथों की संख्या 84 है। कबीरदास की वाणी का संग्रह “बीजक के नाम से लोकप्रिय है। बीजक के 3 भाग हैं – 1. रमैनी  2. सबद  3. साखी

कबीर दास की प्रमुख रचनाएं (Kabir Das Ki Rachna)

कबीर दास जी ने अपनी रचनाओं के द्वारा समाज में फैली कुरीतियों का खंडन किया है। कबीर दास की रचनाओ का प्रभाव आज भी जनमानस पर दिखाई पड़ता है।

कबीर दास ने अपनी रचनाओं में मानव जीवन के अलावा भारतीय संस्कृति, धर्म और भाषा का बड़े ही सुंदर तरीके से वर्णन किया है।

चलिए दोस्तों बात करते हैं कबीर दास की प्रमुख रचनाओं के बारे में। जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं, कबीर दास पढ़े-लिखे नहीं थे।

कबीर दास की वाणी का संग्रह बीजक नाम से प्रसिद्ध है, जिसे उनके शिष्यों द्वारा लिखा गया था।

बीजक के तीन भाग हैं

  1. रमैनी
  2. सबद
  3. साखी

रमैनी– बीजक में कुल 84 रमैनियां हैं।रमैनी में कबीर दास जी ने दार्शनिक एवं रहस्यवादी विचारों का वर्णन किया है। रमैनी को चौपाई छंद के रूप में लिखा गया है। इन्हें ब्रज भाषा में लिखा गया है।

सबद– सबद उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है। इसमें कबीर दास जी ने प्रेम और साधना का वर्णन किया है। सबद को ब्रज भाषा में लिखा गया है। इसमें गेय पद हैं, इसलिए इन्हें गया जा सकता है।

साखी– इसमें कबीरदास की शिक्षाओं और सिद्धांतों का वर्णन किया गया है।

कबीर दास के दोहे (Kabir Das Ke Dohe)

संत कबीर दास जी के दोहे हमारे जीवन में मार्गदर्शक की तरह काम करते हैं। इस लेख के माध्यम से आज मैं कबीर दास जी के सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय दोहे आपके समक्ष पेश कर रहा हूं।

माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय। एक दिन ऐसा आएगा, मैं रो दूंगी तोय।।

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब। पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब।।

लाडू लावन लापसी, पूजा चढ़े अपार। पूजी पुजारी ले गया मूरत के मुह छार।।

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताए।।

कबीर दास जी के दोहे (Kabir Das Ji Ke Dohe)

पत्थर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजू पहाड़। घर की चक्की कोई न पूजे, जाको पीसा खाए संसार।।

बुरा जो देखन मैं, चला बुरा न मिलिया कोय। जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोए।।

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए। औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय।।

दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय। जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे को होय।।

कबीर दास जी के दोहे हिंदी में (Sant Kabir Das Biography in Hindi)

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान। मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान।।

बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।

साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाए। मैं भी भूखा ना रहूं, साधु न भूखा जाए।।

जहां दया तहा धर्म है, जहां लोभ वहां पाप। जहां क्रोध तहा काल है, जहां क्षमा वहां आप।।

माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर। आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर।।

धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय। माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आए फल होय।।

एक ही बार परखिए, ना वा बारंबार। बालू तो हू किरकिरी, जो छाने सौ बार।।

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कबीर दास की मृत्यु (Kabir Das Ki Death)

वैसे तो कबीर दास जी ने अपना ज्यादातर समय वाराणसी (काशी) में बिताया, लेकिन उस समय माना जाता था कि जिस व्यक्ति की मृत्यु मगहर नामक स्थान पर होती है, उसे नरक की प्राप्ति होती है

इसलिए अपने जीवन के अंतिम समय में, वे मगहर नामक स्थान पर जाकर रहने लगे और मगहर नामक स्थान पर ही सन 1518 ई0 में कबीर दास ने अपना देह त्याग दिया।

आज भी मगहर नामक स्थान पर कबीर दास की समाधि है, जिसे हिंदू और मुसलमान दोनों ही संप्रदाय के लोग पूजते हैं।

Kabir Das Ji की मृत्यु के बाद, उनके अंतिम संस्कार को लेकर हिंदू और मुस्लिम संप्रदाय में विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई।

हिंदू धर्म के लोग उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति रिवाज से करना चाहते थे और मुस्लिम धर्म के लोग मुस्लिम रीति रिवाज से करना चाहते थे।

इसी विवाद के दौरान किसी व्यक्ति ने कबीर दास जी के शव से चादर हटा दी, और वहां पर मौजूद सभी लोगों ने देखा कि कबीर दास जी के शव की जगह फूलों का ढेर था।

इस नजारे को देखकर हिंदू और मुस्लिम संप्रदाय के लोग आश्चर्यचकित रह गए। इसके बाद वे आधे-आधे फूल लेकर वहां से चले गए।

FAQ | कबीर दास से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर

कबीर दास कौन थे?

कबीर दास जी 15वीं शताब्दी के रहस्यवादी कवि, महान संत और समाज सुधारक थे। वे न हिंदू न मुसलमान, वे सभी धर्मों का सम्मान करते थे, लेकिन वे मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करते थे। वे केवल निर्गुण निराकार ब्रह्म को मानते थे।

कबीर दास का जन्म कब और कहां हुआ था?

कबीर दास का जन्म सन 1398 ई0 ( संवत 1455) में उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में लहरतारा नामक स्थान पर हुआ था।

कबीर दास की मृत्यु कब हुई थी?

कबीर दास जी अपने अंतिम समय में वाराणसी (काशी)  मगहर चले गए और वहीं पर सन 1518 ईस्वी में कबीर दास की मृत्यु  हुई थी।

कबीर दास के माता-पिता का क्या नाम था?

कबीर दास के पिता का नाम नीरू और माता का नाम नीमा था। हालांकि उनको जन्म देने वाली मां कोई और थी, लेकिन पालन पोषण नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपति ने की थी इसीलिए उन्हीं को उनका माता-पिता माना जाता है।

कबीर दास जी के गुरु कौन थे?

रामानंद जी कबीर दास के गुरु थे। कबीर दास ने स्वयं रामानंद जी को अपना गुरु स्वीकार किया था।

वाणी का डिक्टेटर (Dictator) किसे कहा जाता है?

कबीर दास को वाणी का डिक्टेटर कहा जाता है और उनको यह उपाधि हजारी प्रसाद द्विवेदी ने दी थी।

कबीरदास की प्रमुख रचनाएं कौन-कौन सी है?

रमैनी, सबद और साखी कबीरदास की रचनाएं हैं। इन तीनों रचनाओं के संकलित रूप को “बीजक” नाम दिया गया है।

Conclusion

दोस्तों आज के इस आर्टिकल में आपने Sant Kabir Das Biography in Hindi को पढ़ा, इस लेख में हमने आपको कबीर दास जी के जीवन से जुड़ी समस्त जानकारियों से रूबरू कराया है। हम उम्मीद करते हैं कि आपको Kabir Das Ka Parichay पसंद आया होगा।

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